निकाय चुनाव आरक्षण को हाईकोर्ट में चुनौती, सुनवाई आज, सबकि निगाहें कोर्ट पर ।

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नैनीताल । निकाय चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों की निगाहें एक बार पुन हाईकोर्ट की तरफ लग गई हैं । क्या चुनावों को लेकर हाईकोर्ट से कुछ नए आदेश निर्देश आने वाले हैं । क्या चुनावों की अब तक की तैयारी और खर्चे पर कोई संकट आने वाला है । अब क्या होगा । ऐसी अनेक शंकाए और द्वंद प्रत्याशियों और आम जनमानस के मन मस्तिष्क में चलने लगे हैं।
जी हां यह द्वंद इसलिए उत्पन्न हो गया है कि उत्तराखण्ड में सरकार द्वारा जारी की गई आरक्षण नियमावली में अनेक खोट और झौल को लेकर अलग अलग याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर हुई हैं । कुछ याचिकाएं सिंगल बेंच में तो कुछ डबल बेंच में दायर हुई हैं और वर्तमान में चुनाव प्रक्रिया चलने के कारण सुनवाई तेजी से हो रही हैं । सरकार ने भी कोर्ट में कहा है कि अब चुनाव अधिसूचना जारी हो चुकी है ।
यद्यपि याचिका मुख्य रूप से कुछ नगर निगम और पालिका के अध्यक्ष पद के आरक्षण को लेकर दायर की गई है मगर इसमें आरक्षण निर्धारण नियमों को भी चुनौती दी गई है । याचिकाकर्ताओं का कहना है कि किसी भी वर्ग को उस नगर निकाय में तब आरक्षण दिया जा सकता है जब उस निकाय क्षेत्र में उस जाति के लोगों की संख्या 10 हजार से अधिक हो और रोटेशन में हो। आरक्षण नियमावली के मुताबिक तभी निकायों में आरक्षण दिया जाएगा जब वहां एसटी, एससी, ओबीसी समेत अन्य की संख्या 10 हजार से ऊपर हो। देहरादून की जनसंख्या 8 लाख से ऊपर है, जिसमें ओबीसी और अन्य की संख्या 95,000 से ऊपर है, वहां पर जनरल सीट कर दी गई. हल्द्वानी में भी ओबीसी और अन्य की संख्या 10,000 से ऊपर हैं, लेकिन वहां भी जनरल सीट कर दी गई, जबकि अल्मोड़ा में ओबीसी और अन्य की संख्या 2000 के लगभग है, लेकिन वहां रिजर्व सीट घोषित की गई है। सरकार द्वारा आरक्षण जारी करते हुए इन नियमों का पालन नहीं किया गया। सरकार ने जल्दबाजी दिखाते हुए आरक्षण की अंतिम सूचना जारी करते हुए उसी दिन चुनाव कार्यक्रम भी घोषित कर दिया । आपत्ति जाहिर करने का समय तक नहीं दिया गया, जो कि नियम विरूद्ध।
न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ में कल भी सुनवाई हुई और आज भी सुनवाई होगी । जबकि ऐसी ही अन्य याचिकाओं की मुख्य न्यायधीश जी नरेन्द्र तथा न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ में सुनवाई चल रही है जिस अब 8 जनवरी को सुनवाई होगी । क्योंकि याचिकाओं में आरक्षण नियमावली का चुनौती दी गई है । ऐसे में अब सबकि निगाहें आज और 8 जनवरी को होने वाली सुनवाई पर टिक गई हैं।
इस सब घटना क्रम से जहाॅ आरक्षण का लाभ पाने वालों में कहीं न कहीं चिंता बढ़नी स्वाभाविक है वहीं वर्षों से अध्यक्ष या मेयर पद के ख्वाब सजाए बैठे किन्तु आरक्षण के वार से घायल नेताओं में एक बार पुनः कुछ चमत्कार होने की ख्वाहिशें हिलोरेे मारने लगी हैं, कि कहीं क्या पता कुछ किये बगैर ही बटेर हाथ लग जाय।

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