मसूरी में मुद्दों पर पड़ेंगे वोट या निहित स्वार्थ, शराब और नकदी करेगी बर्बाद।

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मसूरी । आज उत्तराखण्ड में नगर निकायों का कार्यकाल खत्म हुए ठीक एक साल हो गया है । अब तो पंचायतों का कार्यकाल भी खत्म हो गया है। नियम से नगर निकायों के चुनाव कार्यकाल खत्म होने से पूर्व ही करा लिए जाने चाहिए थे मगर इसे प्रदेश सरकार द्वारा छोटी सरकारों का गला घोटना कहें या सरकार अपने सवैंधानिक कर्तव्यों को पूरा करने में विफल रही है, ये कहें, दोनों फिट बैठते हैं ।
खैर अब एक वर्ष बाद नगर निकायों के चुनावों की सुगबुगाहट तेज हो गई है और जल्दी ही निकाय चुनाव सम्पन्न होने के आसार नज़्ार आ रहे हैं । लेकिन अगर हम अपने शहर मसूरी की बात करें तो सवाल तो बनता है कि क्या इस बार मसूरी नगर पालिका का चुनाव मुद्दों पर होगा या फिर मसूरी हित के मुद्दों को नेता और वोटर दोनों ही एक किनारे करते हुए निहित स्वार्थों पर वोट करेंगे व वोट पाएंगे ?
मसूरी ने पिछले कुछ वर्षों से खामोशी ओढ़ी हुई है । अब यहाॅ भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ झण्डे भी नहीं दिखते । आवास की समस्या है तो लोग चुप हैं । सड़क के गडढ़ों की समस्या है तो लोग चुप हैं । पानी- बिजली की समस्या है तो लोग चुप हैं । सरकारी सम्पत्ति पर कब्जा हो रहा है तो लोग चुप हैं । छोटे व्यवसायियों का रोजगार छिन रहा है तो लोग चुप हैं। बस्ती उजड़ रही हैं तो लोग चुप हैं । भ्रष्टाचार सारे पिछले रिकार्ड तोड़ रहा है तो लोग चुप हैं । नियम कानून की धज्जियां उड़ रही हैं तो लोग चुप हैं ! पक्ष विपक्ष ‘हम सब एक हैं’ की भूमिका में नज़र आ रहे हैं ।
किसी जमानें में एक सम्मानित सभासद की भी इतनी इज्जत होती थी कि ज बवह शहर के किसी कोने पर पंहुच जाते थे तो लोग उनके सम्मान में खड़े हो जाते थे । आज सभासद तो छोड़ों कुछ पूर्व अध्यक्षों की क्या स्थिति है मसूरी वासियों से छुपी हुई नहीं है । अब आजकल नगर में यह चर्चा आम है कि पालिका अध्यक्ष बनने के ख्वाब सजाए कुछ दूषित नेताओं को सम्पूर्ण मसूरी के वोट तो चाहिए ही नहीं । उन्होंने तो हिसाब लगा रखा है कि जीतने के लिए 55 सौ करीब वोट चाहिए इसलिए मसूरी नगर के लगभग 24 हजार वोटों में से उनका तारगेट केवल 6 हजार वोट है, इसलिए सम्पर्क भी उन्हीं लोगों तक है । बाकी वोट की जरूरत नहीं है । और अपनी ओर से उन्होंने इतने वोट का जुगाड़ कर रखा है । अब इन 6 हजार वोटरों में अधिकांश वे लोग हैं जो मसूरी के स्थाही निवासी नहीं है और जिन्हें मसूरी के भले से कोई लेना देना नहीं है। इनमें अधिकांश वो लोग हैं जो धिहाड़ी मजदूरी करने दूसरे क्षेत्रों या दूसरे प्रदेशों से मसूरी आ रखे हैं और जिनका मसूरी के सामाजिक सरोकारों या अच्छे भविष्य से कुछ लेना देना नहीं है ।
अब ऐसे वोटरों को नेताजी ने पिछले एक साल से रोज शाम को दारू का पव्वा और बीच बीच में चिकन पार्टी व धनवर्षा कर अपने पाले में बिठाया हुआ है । जो लोग शराब और दावतों पर नहीं पटते उन्हें बड़े ठेके, दुकान, आवास देने का प्रलोभन भी भरपूर दिया जा रहा है । यही हाल अनेक वार्डों में भी है । अनेक संभावित प्रत्याशी वार्ड में पिछले लम्बे समय से खूब शराब, मटन और नकद नारैण आवंटित कर वोटरों को साधने में लगे हुए हैं। कुल मिलाकर आज के इस दौर में वोटों का सौदा भी ज़मीन के सौदे की तरह हो रहा है। अब इन सब बातों से यह तो साफ है कि जब बिक्रय वाले हैं तो तभी क्रय वाले भी हैं । हालांकि मसूरी में बड़ी संख्या जिम्मदार वोटरों की है जो सिर्फ मसूरी का भला चाहते हैं और योग्य प्रत्याशी को तलाश रहे हैं । मगर क्या सभी मसूरी हितैषी वोटर एकजुट हो पाएंगे, यह देखने वाली बात होगी। मगर शराब, मुर्गा, अवैध कमाई की बंदरबांट को देखते हुए सवाल यही है कि मसूरी नगर पालिका चुनाव 2024-25 मुद्दा आधारित होगा या ………….. । … इस बारे में आप क्या सोचते हैं अपनी राॅय ‘लोकरत्न हिमालय’ के कमेट्स बाक्स में अवश्य दें ।

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