पहाडों की मसूरी की दुर्दशा के लिए वोटर दोषी? लोगों के घरों पर लटकी तलवार, दहशत का पर्याय बना एमडीडीए !

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मसूरी । आजाद भारत में मसूरी दुनिया का वह पहला शहर होगा जहां के मूल निवासी अपनी ही भूमि पर अपना मकान नहीं बना सकते । आज अपनी खून पसीनें की कमाई से अपने परिवार के लिए घर बनाने वाले लगभग सभी सम्मानित नागरिकों को भारी खामोशी के साथ एमडीडीए में सुनवाई के दौरान हर माह एक ऐसे गुनाहकार की तरह खड़ा होना पड़ता है जैसे उसने कितना बड़ा जुर्म कर दिया हो। ऐसी दहशत, डर और सहमा रहना पड़ता है जैसा कि गोली मार देने वाला अपराधी भी नहीं रहता । मसूरी में एमडीडीए की दहशत शोले फिल्म के उस गब्बर सिंह की तरह है कि जिसे अपनी पीड़ा बताने पर वह गोली मार देगा। लोग एमडीडीए की डर से अपने शोषण की बात भी बयाँ नहीं कर सकते। कहीं आवाज नहीं उठा सकते। यही वजह है कि लोग अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों के तहत धरना प्रदर्शन भी नहीं कर सकते। प्रदर्शन तो छोडो अगर कोई हिम्मती नागरिक एमडीडीए के खिलाफ़ आवाज उठाते हैं तो चाहकर भी उनके साथ खड़े नहीं हो पाते , कारण यह ‘डर’ कि अगले दिन एमडीडीए वाले उनका मकान गिराने न पहुँच जायं। यही वजह है कि एमडीडीए की दोहरी नीति के खिलाफ मसूरी के दो युवा नितिन दत्त और मोहन कैन्तुरा कड़ाके की ठंड के बावजूद एमडीडीए कार्यालय बैकरीहिल मसूरी पर पिछले 48 घंटे से धरने पर बैठे हैं , मगर ऐसा लगता है कि मसूरी में एमडीडीए से शोषित लोग उनका समर्थन करने तक वहां पहुंचने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहे हैं।

आखिर सरकार किस काम के लिए होती है । विधायक, नगर पालिका किस काम के लिए होते हैं । आखिर क्यों नहीं मसूरी के दबंग विधायक जो कि मंत्री भी हैं वन विभाग और एमडीडीए के कान खींचते हैं। क्यों नहीं मसूरी में वन टाइम सेटलमेंट योजना को क्रियान्वित करते हैं । 15 कि0 मी0 नीचे देहरादून में धड़ल्ले से लोगों के नक्श पास हो रहे हैं। लोगों को वन टाइम सेटलमेंट योजना का लाभ मिल रहा है, मगर मसूरी इससे वंचित क्यों।
मसूरी नगर पालिका बड़े बड़े रसूखदारों और पूंजीपतियों को पूर्ननिर्माण के नाम पर धड़ाधड़ एनओसी दे रही है । उससे आवास के नाम पर गली गली में धड़ल्ले से होटल बन रहे हैं । मार्ग अवरूद्व हो रहे हैं । चलना फिरना दुभर हो रहा है । मसूरी की शांति खत्म हो रही है । मसूरी का प्राकृतिक वातावरण नष्ट हो रहा है । कभी पहाड़ों की रानी के नाम से विश्व विख्यात मसूरी अब कंक्रीट के चट्टानों की दासी बनकर रह गई है। मसूरी पर लगातार दवाब बन रहा है । नगर की विद्युत, पेयजल, सीवर और ट्रेफिक व्यवस्था भी खराब हो रही है । अवैध कटान व खनन से मसूरी जोशीमठ की तर्ज पर आगे बढ़ रही है । मगर आवास और विकास के नाम पर होटलों के नक्शे खूब पास हो रहे हैं। उन्हें पालिका, चन विभाग आदि से खूब एनओसी मिल रही है । ऐसे मामलों में इन विभागों की निर्माण और एनओसी के नाम पर प्रकृति बदल जाती है। और दूसरी तरफ नियम के नाम पर मसूरी के आम नागरिक का नक्शा पास नहीं होगा, वह बड़े होते बच्चों और बहु लाने के सपने को पूरा करने के लिए घर नहीं बना सकता । वह तो चालान के नाम पर सालों साल या ताउम्र विभागों के आगे गुनाहगार बनकर कटघरे में खड़ा रहेगा और खड़ा है । कई लोग तो दुनिया भी छोड़ गए होंगे ।
मगर इस सबके लिए दोषी कौन । क्या वही वोटर नहीं जो पार्टी के नाम पर, राष्ट्रीय नेताओं के नाम पर निकम्में या स्वःहित तक सीमित रहने वाले नेता को वोट देते हैं, जो छल कपट करते हैं। पिछले 5 वर्ष में मसूरी नगर पालिका ने स्वयं अनेक अवैध निर्माण किए । उन्हें सही ठहराने के लिए नगर पालिका आयुक्त की कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक पंहुच गई । आखिर क्यों नहीं मसूरी नगर पालिका व्यापक जनहित में मसूरी वासियों को आवास का हक देने के लिए हाईकोर्ट सुप्रीमकोर्ट तक पंहुच गई । विधायक, मसूरी नगर पालिका के चुने हुए जनप्रतिनिधि या अन्य नेता मसूरी वासियों की इस ज्वलंत समस्या के निस्तारण के लिए क्यों नहीं कार्य करते हैं? क्योंकि उन्हें चुनाव के समय गिफ्ट बांटकर, प्रलोभन देकर, पार्टी या दिल्ली के नेताओं की दुहाई देकर क्षेत्र- जाति भेद में बरगलाकर सस्ते में ही जनता के वोट मिल जाते हैं । लोग 5 साल तो उनसे खफा होते हैं मगर फिर चुनाव के वक्त क्यों अपनी पीड़ा याद नहीं रहती । तो ऐसे में क्या पहाड़ों की रानी मसूरी की दुदर्शा के लिए वोटर जिम्मेदार नहीं हैं ? क्या एक बार ऐसे छल कपटी नेताओं को वोट न देकर उन्हें हराकर कर जनता की बात सुनने के लिए लिए मजबूर नहीं किया जा सकता । क्या एक स्वच्छ राजनीति स्थापित नहीं की जा सकती? यदि हां तो सोचो जरा! मसूरी नगर पालिका चुनाव नजदीक है ।

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