न मेरा कोई घोषणा पत्र न कोई वि़जन, पर वोट मुझे ही देना
मसूरी । बहुत ताज्जुब होता है कि आज अनेक लोगों ने स्थानीय सरकार के चुनाव को गुड़िया गुड्डे का खेल या कोई इनामी प्रतियोगिता समझ लिया है कि चलो है हम भी कुछ हाथ अजमाते हैं । नगर में या अपने वार्ड क्षेत्र के सामाजिक सरोकारों से वास्ता न रखने, समस्याओं पर कभी न बोलने वाले अनेक ऐसे लोग भी इस बार चुनाव में खड़े नज़र आ रहे हैं और वे अपने लिए जनता से वोट मांग रहे हैं । चुनाव में खड़ा होना बहुत अच्छी बात है यह लोकतंत्र की मजबूती और खूबसूरती है । मगर लोगों से वोट मांगने के लिए कम से कम यह तो जरूरी है कि उस प्रत्याशी का चुनाव लड़ने का कोई उद्देश्य हो । उसका एक घोषणा पत्र हो जिसमें उसका विजन हो कि वह उस शहर या अपने वार्ड के लिए क्या सोचता है यदि चुना जाता है तो क्या विकास करेगा, कैसे जरूरतमंदों को रोजगार के साधन मुहैया करायेगा । उसके क्षेत्र का कैसा विकास होना चाहिए, उसकी क्या योजनांए हैं?
लेकिन गजब है साब, चुनाव में अब ऐसे लोग उठने लगे हैं जिनके पास अपने नगर या अपने वार्ड के विकास या समस्याओं के समाधान का कोई रोड़मैप नहीं है । उनकी कोई अपील तक नहीं बंटती। स्थिति तो यह कि अनेक ऐसे भी व्यक्ति हैं जो पूर्व में सभासद रहे और अब दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं उनका तक कोई विजन पत्र नहीं है। जो पूर्व सभासद हैं वे पत्र जारी कर जनता को यह तो बताने का काम करते कि उन्होंने पिछले 5 साल में अपने वार्ड में ये ये विकास कार्य किए हैं, इतने भाई बहनों को रोजगार से जोड़ा । मगर नहीं । तो क्या इसका अर्थ यह तो नहीं है कि उन्होंने जनता के कोई कार्य किए ही नहीं, उनकी अपने वार्ड के लिए ऐसी कोई उपलब्धि ही नहीं है जिसका वे उल्लेख कर सकें ।
अब मतदाताओं को अपना विजन पत्र न दे सकने वाले शेष नए प्रत्याशियों के बारे में तो यही कहा जा सकता है कि उन्हें शायद न तो नगर पालिका के कार्य क्षेत्र की कोई जानकारी है न ही अपने वार्ड के लिए कोई विजन है। अब ऐसे प्रत्याशियों पर यह लाइन ठीक बैठती है कि ‘ न मेरा कोई घोषणा पत्र न कोई वि़जन, पर वोट मुझे ही देना।’ हालांकि यह मतदाताओं को ही सोचना है कि अपने नगर और वार्ड की खुशहाली के लिए उन्हें कैसे प्रत्याशी को वोट करना है ।